शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

देशद्रोह का भारतीय कानून

देशद्रोह का भारतीय कानून
नई दिल्ली, 27 फरवरी 2016। बीते दिनों के कुछ घटनाक्रम पर एक नजर -
परिदृश्य – 1, स्थान – दिल्ली, दृश्य - देश में अभी जेएनयू में लगे देशद्रोह के नारे के मामले पर बवाल मचा है और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर इस मामले में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाया।
परिदृश्य – 2, स्थान – कोच्ची, दृश्य - भारतीय दंड संहिता के 155 वे वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में साल भर चले समारोह का मंच। उस मंच पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी कहते हैं कि देश के आपराधिक कानून में सुधार की जरूरत है। श्री मुखर्जी ब्रिटिश शासन द्वारा बनाये गये उन आपराधिक कानून को 21वी सदी में समाज के बदलते परिवेश के अनुसार बदलने की बात करते है जो अंग्रेजों ने अपने शासन को चलाने के लिए बनाया था। राष्ट्रपति आर्थिक अपराध के मद्देनजर इस जैसे आधुनिक अपराधों को भी आपराधिक कृत्य में शामिल करने की आवश्यकता पर बल देते है।

(Photo Courtesy - President of India Website)
इन दोनो दृश्यों में कोई संबंध हो सकता है या नही भी हो सकता है। हो सकता है राष्ट्रपति को भारतीय दंड संहिता (भादंस) में सुधार की जरूरत ही अब महसूस हुई हो जो उनके द्वारा यूपीए सरकार में ताकतवर मंत्री रहते हुए न महसूस किया गया हो। ये सब तो महज अनुमान भर है क्योंकि राष्ट्रपति आम लोगों की तरह तो नही सोंचते। आपको बता दें कि भारतीय दंड संहिता 1 जनवरी 1862 को लागू हुआ था और तब से इसमें कई बदलाव हुए हैं लेकिन उसकी मूल भावना नही बदली है जो थी – पुलिसिया राज्य कायम करना।