भ्रष्टाचार की हद
11 दिसम्बर 2015, नई दिल्ली।
देश में भ्रष्टाचार कम होने का नाम नही ले रही है। मंगलवार 08 दिसंबर को दिल्ली
सरकार के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मुख्य
सचिव को उनके निजी सहायक के साथ सीबीआई ने 2.2 लाख रूपये घूस लेते हुए रंगे हाथों
गिरफ्तार किया। अक्टूबर महीने में सीबीआई ने दिल्ली सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति
मंत्री के खिलाफ घूसखोरी का मामला दर्ज किया था। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और
उपाध्यक्ष को दिल्ली की एक निचली अदालत ने हेराल्ड हाउस केस के मामले में
व्यक्तिगत तौर पर पेश होने को कहा है क्योंकि उनपर कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र
नेशनल हेराल्ड की संपति को एक कंपनी को बेचने का आरोप है। केरल के मुख्यमंत्री पर
घूसलेने और व्याभिचार में लिप्त होने की जांच न्यायिक आयोग कर रहा है। कल एक अखबार
के मुताबिक धान की खरीद में यूपीए-2 के शासनकाल में बड़ा घोटाला हुआ है जो तकरीबन
40 हजार करोड़ का है। मैं कांग्रेस नीत् यूपीए के शासन काल में हुए घोटालों पर नही
जा रहा हूँ, लेकिन सवाल ये उठता है कि भ्रष्टाचार का सिलसिला कब थमेगा?
जहाँ तक मैं देखता और समझता
हूँ ये महसूस होता है कि भ्रष्टाचार लोगों के नस-नस में समा गया लगता है। हर कोई
अपना काम सुविधाजनक रूप से करवाना चाहता है और इसके लिए सुविधाशुल्क के रूप में कीमत
चुकाने को भी तैयार है। फिर क्यूँ न हो भ्रष्टाचार? कानून के मुताबिक घूस लेनेवाला और देनेवाला दोनो
समान रूप से दोषी होता है, लेकिन सजा हमेशा लेनेवाले को होती है क्योंकि देनेवाले
को हमेशा पीड़ीत के रूप में देखा जाता है। कई ऐसे प्रस्ताव दिए गये हैं जिनमें घूस
देने वाले को माफी या सजामुक्त करने के प्रावधान को मंजूरी देने की बात की गई है
लेकिन इससे फायदा क्या होगा? ट्रांसपरेंसी
इंटरनेशनल की 2015 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 में भारत 175 देशों में
85 वें स्थान पर था जबकि वर्ष 2013 में 94 वें स्थान पर था। भारत की स्थिति पड़ोसी
चीन और पाकिस्तान से बेहतर है।
भारत
में भ्रष्टाचार की मूल वजहों पर गौर करें तो पहला कारण भौतिक सुख की लालसा जो लालच
को जन्म देती है और दूसरा मेहनत और ईमानदारी की कमी नजर आती है। भौतिक सुख की
कामना तो सबको होती है पर जब ये आसक्ति में बदल जाती है तो लालच को जन्म देती है
और लालच मनुष्य को भ्रष्टाचार के लिए प्रेरित करता है। किसी सुख की कामना बुरी बात
नही अगर वो मेहनत और ईमानदारी से हासिल किया जाए लेकिन बेईमानी से हासिल किया हुआ
हर साधन भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। आजकल बड़ी जमात ऐसी है जो मेहनत नही
करना चाहती और सबकुछ शॉर्टकट में पाना चाहती है। इस जमात में नई पाढ़ी से लेकर
बड़े बुजुर्ग तक शामिल हैं। इस शॉर्टकट के चक्कर में आदमी भ्रष्टाचार में शामिल हो
जाता है। मसलन देश की एक बड़ी समस्या कतार में खड़े नही होने की है। ये समस्या
सिर्फ अनपढ़ लोगों की नही है बल्कि पढ़ेलिखे लोग भी कतार में खड़े नही होना चाहते
और इसके लिए कुछ उपाय ढूंढ़ते है और ये उपाय वाला रास्ता भ्रष्टाचार की ओर
अग्रसारित करता है। यह महज एक उदाहरण था लेकिन मेरा तात्पर्य व्यवस्था को नही
मानने से है। किसी भी समाज को नियंत्रित करने के लिए कुछ तंत्र बनाये जाते है और इस
तंत्र को चलाने के लिए कुछ व्यवस्था बनाई जाती है। समाज का कोई व्यक्ति अगर उस
व्यवस्था को नही मानता है तो ये स्पष्ट है कि वो उस तंत्र को नही मानता या उसमें
विश्वास नही करता और इस तरह समाज की व्यवस्था बिगड़ती है। कुछ इसी तरह जब कोई
तंत्र से अलग होकर या कहें परे जा कर उस कोई काम करता है या करवाता है तो वो कार्य
भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
आज
समाज और लोगों को यह बात समझना होगा कि सामाजिक ढ़ांचे में रहकर ही काम करना
ईमानदारी है और व्यवस्था का सम्मान करना सामाजिक कर्तव्य है। बिना इस कर्तव्य का
निर्वहन किए भ्रष्टाचार से मुक्ति नही मिलने वाली। जय हिंद, जय भारत।
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