देश में स्वच्छता
(टाइम्स ऑफ इंडिया से साभार)
18 नवंबर 2015, नई दिल्ली। आज सुबह उदयीमान सूर्य को अर्ध्य देने के साथ महापर्व छठ संपन्न हुआ। सुबह अखबार के पहले पन्ने पर छठ पूजा के एक व्रती की तस्वीर ने विचलित कर दिया। उस तस्वीर में एक व्रती यमुना नदी के झागदार काले जल में स्नान कर रही है। यह उस महिला की इस महापर्व में आस्था है कि वो उस जल में भी डूबकी लगा रही है जिसमें शायद जानवर भी स्नान नही करते। यह पर्व शुचिता का है, स्वच्छता का है और पर्यावरण संतुलन बनाये रखने का है लेकिन इस तस्वीर ने मुझे सोंचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस तरह का व्रत कर रहे है?
18 नवंबर 2015, नई दिल्ली। आज सुबह उदयीमान सूर्य को अर्ध्य देने के साथ महापर्व छठ संपन्न हुआ। सुबह अखबार के पहले पन्ने पर छठ पूजा के एक व्रती की तस्वीर ने विचलित कर दिया। उस तस्वीर में एक व्रती यमुना नदी के झागदार काले जल में स्नान कर रही है। यह उस महिला की इस महापर्व में आस्था है कि वो उस जल में भी डूबकी लगा रही है जिसमें शायद जानवर भी स्नान नही करते। यह पर्व शुचिता का है, स्वच्छता का है और पर्यावरण संतुलन बनाये रखने का है लेकिन इस तस्वीर ने मुझे सोंचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस तरह का व्रत कर रहे है?
देश में आज जो माहौल
बना हुआ है उससे ये लगता है कि सामाजिक प्रदूषण भी हुआ है और हमें उसके बारे में
भी चिंतित होने की जरूरत है। देश में कुछ लोगों के विचार भी कलुषित हुए है और वो
आज हमारे समाज में देखने को मिल रहा है। देश में सनातन धर्म की बात करें तो कट्टर और
असहिष्णु घोषित कर दिया जाता है। आज देश को विदेश में सम्मानित नजरिए से देखा जा
रहा लेकिन कुछ लोग शत्रु देश में जाकर देश और देश के संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति
की बुराई करते है। देश के एक तबके को अभी तक ये बात गले नही उतर पा रही है कि सनातन
धर्म को जानने, मानने और सम्मान करने वाला व्यक्ति देश में शीर्ष पद पर आसीन हो
गया है। उस सनातन धर्मावलंबी के नेतृत्व में देश में विश्व गुरू बनने की राह पर चल
पड़ा है। छठ महापर्व में विचारों की शुचिता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी वातावरण
की स्वच्छता। इस महापर्व में सर्वशक्तिमान भगवान भास्कर के प्रति पूर्ण समर्पण के
द्वारा विचारों में शुद्धता लायी जाती है। उसी प्रकार दुनिया के सबसे बड़े
लोकतंत्र में सर्वशक्तिमान जनता-जनार्दन के जनादेश के प्रति पूर्ण समर्पण कर देश
के राजनीतिज्ञों के विचारों में शुद्धता लायी जा सकती है। आज जरूरत इस बात की है
कि इस महापर्व के द्वारा प्रतिपादित मूल्यों को जीवन में उतारा जाए और समाज और वातावरण
को स्वच्छ बनाया जाए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें