मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

बिहार चुनाव और गौवंश का महत्व

बिहार चुनाव और गौवंश का महत्व
06/10/2015, नई दिल्ली। बिहार चुनाव के महासमर में लालू यादव के द्वारा दिया गया एक बयान महागठबंधन के लिए मुसीबत का सबब बनते जा रहा है। विपक्षी एनडीए ने इस बयान को लपकने में देर नही की और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रातों-रात रणनीति बदलते हुए लालू यादव पर हमला बोलने में भी देर नही की। उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के बिसहाड़ा गांव में एक व्यक्ति की भीड़ द्वारा पीटकर हत्या किये जाने पर रविवार को प्रतिक्रिया देते हुए राजद अध्यक्ष ने कहा कि हिंदू गौमांस खाते हैं और जो भारतीय विदेश में रहते हैं वो भी गौमांस खाते है। रोजाना मांस खाने वाले के लिए गौमांस और बकरे के मांस में कोई फर्क नही होता है। सभ्य लोग कभी मांस नही खाते। इस बयान के आते ही बीजेपी की तरफ से प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई और इस मुद्दे को हर मंच और सभा मे उठाया जा रहा है। इस बयान पर महागठबंधन की तरफ से कोई आधिकारिक बयान अब तक सामने नही आया है। गलती का एहसास होने पर लालू यादव ने झल्लाते हुए कहा कि शैतान ने ये सब उनके मुँह से निकलवाया है।

आज पूरे देश में गौमांस खाने को लेकर बहस चल रही है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक देश है और खपत के मामले में सातवां स्थान रखता है। बीफ के उत्पादन में पूरी दुनिया में भारत पाँचवा स्थान रखता है। सवाल ये उठता है कि भारत रातों-रात इस क्षेत्र में इतना आगे तो बढ़ा नही होगा। इसके लिए केंद्र सरकार की कुछ तो नीतिगत खामियां रही होंगी जिसके वजह से यह समस्या उत्पन्न हुई है। भारत की सरकार को इस पर गौर करना होगा। संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के तहत अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने के प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्ल के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा। संविधान निर्माताओं को इसमें लेश मात्र भी शक नही था कि गोवंश हमारे अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण आधार है। सबसे बड़ा सवाल है कि संविधान के लागू होने के 65 सालों तक सरकारों ने इस दिशा में कोई कदम क्यों नही उठाया कि गौ-आधारित कृषि-व्यवस्था खत्म न होने पाये? आज गाय और गौ-वंश की हत्या क्यों हो रही है, जब इसका कारण पता करे तो ये जानकारी निकलकर सामने आती है कि गाय और गौवंश कृषि-व्यवस्था का आधार नही रहे हैं। अब गौवंश आय का साधन शायद नही रहा लेकिन पहले ऐसा नही था।           
प्राचीन काल से गाय हमारी अर्थ-व्यवस्था का आधार रही है। गौ-आधारित कृषि-व्यवस्था पर निर्भर रह कर हमारा कृषक समाज यहां तक पहुँचा है। हर किसान अपने यहां गाय और बैल का पालन करता था और खेती के लिए मुख्य साधन बैल हुआ करते थे। हाल के वर्षों तक किसान के लिए बैल से हल जोतना, गोबर से खाद का निर्माण और प्रयोग तथा सिंचाई के लिए भी बैल द्वारा रहट का प्रयोग करना कृषि के साधन हुआ करते थे। तकनीक के बढ़ते प्रयोग ने भारत में इस कृषि व्यवस्था का सबसे ज्यादा नुकसान किया। हल चलाने का बजाए ट्रैक्टर से खेत की जुताई, गोबर से बने खाद के बदले रासायनिक उर्वरक का प्रयोग ने गोवंश आधारित कृषि व्यवस्था को लगभग खत्म कर दिया है। इसके अलावा घर में गाय पालने से दूध, दही और घी की प्राप्ति होती थी जो हमारे आहार का मुख्य हिस्सा हुआ करते थे। जब गाय हमारे जीवन में इतनी महत्वपूर्ण स्थान रखती थी तो हर किसान के घर गौपालन किया जाता था। लेकिन आज जब कृषि का आधार बदल गया है तो ऐसे में गौपालन सबके वश की बात नही रह गयी है। शायद ये वो वजह है कि किसान गाय तो पालता है ताकि दूध मिल सके लेकिन बछड़े जो आगे चलकर बैल बनता है उसे पालना नही चाहता। इस कुव्यवस्था से अगर हमें छुटकारा पाना है तो सबसे पहले गाय को आय का साधन बनाना पड़ेगा। सिर्फ दूध के लिए गाय पालने से आगे बढ़ कर हमें सोंचना होगा और आधुनिक तकनीक के साथ गौवंश का कृषि में अधिकतम प्रयोग हो सके इसका उपाय ढ़ूँढ़ना होगा। आज पूरी दुनिया में जैविक उत्पादों खासकर खाद्य पदार्थों की मांग है और इसके लिए गौवंश आधारित कृषि-व्यवस्था से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नही हो सकता। हमें इस दिशा में जोर-शोर से प्रयास कर गौवंश को असमय काल-कवलित होने से बचाना होगा ताकि हम अपना भविष्य सुरक्षित कर सकें और इस देश को गरीबी और दुख के जंजाल से मुक्ति दिला सकें।

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