बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

बेटियों की नई उड़ान

बेटियों की नई उड़ान
28/10/2015, नई दिल्ली। भारत सरकार ने देश की बेटियों को एक और अहम जिम्मेदारी दी है और वो है लड़ाकू विमान उड़ाने की। रक्षा मंत्रालय ने एक हालिया फैसले में इस विषय में अपनी मंजूरी दी है। इसकी जानकारी रक्षा मंत्रालय द्वारा 24 अक्टूबर 2015 को एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से दी गई। सेना के तीनो अंगों में महिलाओं की भर्ती को मंजूरी साल 1991 में मिल गई थी और पहली महिला पायलट को साल 1992 में वायुसेना में जगह मिली थी।
इसके बाद महिलाओं की भर्ती पायलट के तौर पर हेलिकॉप्टर, परिवहन और नेविगेशन के क्षेत्र में की जाने लगी थी लेकिन लड़ाकू विमान उड़ाने की जिम्मेदारी नही दी गई थी। बेटियों में देश सेवा के जज्बे का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जब पहली बार वायु सेना ने 8 पायलट के लिये आवेदन मांगा तो 20 हजार से ज्यादा आवेदन प्राप्त हुए। जिनमें से 13 उम्मीदवारों का चयन किया गया। वायुसेना अकादमी, हैदराबाद में इन कैडेट को 3 महीने की उड़ान पूर्व प्रशिक्षण दिया गया। उसके बाद स्टेज-1 की ट्रेनिंग एक HPT-32 विमान पर दिया गया और स्टेज-2 का प्रशिक्षण किरण विमान पर दिया गया। 10 महीनों के गहन प्रशिक्षण के बाद 7 में से 5 कैडेट्स ने सफलता पूर्वक कोर्स पूरा किया और येलहांका वायु सेना स्टेशन में पायलट कन्वर्शन ट्रेनिंग प्राप्त किया। स्टेज-3 का सफल प्रशिक्षण AVVO और AN-32 विमान पर सफलता पूर्वक प्राप्त करने के बाद उन्हें कमिशंड ऑफिसर का दर्जा मिला लेकिन ये शॉर्ट सर्विस कमिशन था। भारतीय वायुसेना में पहली महिला पायलट को 17 दिसम्बर 1994 को शामिल किया गया। इसके बाद लंबे समय तक महिलायें शॉर्ट सर्विस कमिशन में लगातार शामिल होती रहीं लेकिन स्थायी कमिशन तब भी उनके लिए सपना बना रहा। कारगिल युद्ध में फ्लाईट ऑफिसर गुंजन सक्सेना ने इतिहास रचते हुए युद्ध क्षेत्र में उड़ान भरने का गौरव हासिल करने वाली पहली महिला पायलट बनी। उनके युद्ध क्षेत्र में हेलिकॉप्टर उड़ाने के कारनामें के लिए उन्हें शौर्य वीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 2007 में रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट में महिला अधिकारियों को जंग के मोर्चे पर उस जगह तैनात न करने की अनुशंसा की गई थी, जहां शत्रु के शरीर के करीब आने के अवसर ज्यादा होते हैं। उनका मानना था कि युद्ध क्षेत्र में शत्रु के हाथ पड़ जाने पर उनके साथ बुरा सलूक किया जा सकता है जिससे सेना के मनोबल पर बुरा असर पड़ सकता है। हलांकि ये दलीलें महज एक बहाना थी और पुरुषों के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए दी जाती थी क्योंकि दुनिया के अनेको देश की सेनाओं में महिलायें युद्ध क्षेत्र में अपना युद्ध-कौशल दिखा रहीं है। बदलते सामाजिक समीकरण और स्त्रियों की आकांक्षाओं के वजह से रक्षा मंत्रालय ने ऐलान किया है कि जून 2017 तक महिलायें लड़ाकू विमान उड़ाने के लिए तैयार हो जायेंगी। देश के सैन्य बल में 13 लाख की संख्या में 60 हजार ऑफिसर्स है जो कि अपने स्वीकृत संख्या से करीब 11 हजार कम है। इसमें महिला ऑफिसर्स की संख्या थल सेना में 1436, जलसेना में 413 और वायुसेना में 1331 है। रक्षा मंत्रालय के इस फैसले से ऑफिसर्स की इस कमी को पूरा करने में मदद मिलेगी। महिलाओं को स्थायी कमिशन देने का फैसला 2009 में लिया गया। इसके बाद से अब तक सिर्फ 340 महिला ऑफिसर्स को स्थायी कमिशन मिला है। इस समय वायु सेना 94 महिला पायलट हैं, जो परिवहन और हेलीकॉप्टर स्ट्रीम जैसी शाखाओं से जुड़ी हुई हैं। रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि भारतीय वायु सेना की परिवहन व हेलीकॉप्टर इकाइयों में शामिल महिलाओं का प्रदर्शन सराहनीय व  पुरुष सहकर्मियों जैसा ही है। अब ये उम्मीद की जानी चाहिए कि रक्षा मंत्रालय जल्द ही सेना व नौसेना में भी महिलाओं को युद्धक भमिकाएं देने का ऐलान करेगा। महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने की इजाजत देने वाले मुल्कों में अमेरिका, रूस, तुर्की, ब्रिटेन, सर्बिया व पाकिस्तान जैसे देश रहे हैं। अब भारत का नाम भी इस सूची में जुड़ गया है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें