आज की ख़बर यह आयी की jet airways ने लगभग १००० कर्मचारियों को हटा दिया है। अब सवाल यह उठता है की क्या भारतीय कम्पनियाँ भी विश्व व्यापी मंदी के चपेट में आने लगी है? एक दो दिन पहले की ख़बर यह थी की भारतीय मूल के उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल को प्रतिघंटे लगभग ५० करोड़ रुपये का नुक्सान हुआ है। मुकेश अम्बानी की सम्पति ३ लाख करोड़ से घाट कर लगभग १.५ लाख करोड़ रुपये रह गयी है। इस बात से एक बात तो साफ़ हो गयी है की भारतीय कम्पनियाँ भी इस मंदी के चपेट में है। लेकिन क्या भारतीय अर्थव्यवस्था इस मंदी से प्रभावित हुई है ? वित्त मंत्री श्री पि चिदम्बरम को बार-बार यह कहना पड़ रहा है की भारत मंदी के चपेट में नही है और भारतीय अर्थ व्यवस्था मजबूत है । लेकिन यहाँ पर एक सवाल यह भी उठता है की आख़िर वित्तमंत्री को बार -बार यह कहने के लिए क्यूँ आगे आना पड़ रहा है ? रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर को क्यूँ यह कहना पड़ रहा है की हम मंदी के चपेट में नही है ? रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को सीआरआर कट करना पड़ रहा है? मुचुअल फंड्स को बचने के लिए आर बी आई को आगे आना पड़ रहा है? यही बात करीब डेढ़ साल पहले इस साल के नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री पाल क्रुगमन ने अपने भारत दौरा पर कहा था की कमजोर वित्तीय संस्थानों को बंद कर देना चाहिए। लेकिन तब यह बात लोगो को बहुत बुरी लगी थी। उस समय अगर यह बात लोगो के समझ में आ गई होती तो शायद यह दिन नही देखना पड़ता।
अब बात यहाँ पर आकर रूकती है की भारत में क्या प्राइवेट सेक्टर में इस तरह छटनी करना क्या इस मंदी के प्रभाव को कम कर पायेगा। कंपनिया अपना एम्प्लोयी बेस कम करके क्या इस दौर से उबार पाएँगी? इस बात का जवाब आने वाले समय ही देंगा ? इस बात पर
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