मंगलवार, 10 नवंबर 2015

जात न पूछो बिहार की

जात न पूछो बिहार की
10 नवंबर 2015, नई दिल्ली। जिस बिहार विधानसभा चुनाव 2015 पर पूरे देश की नजर थी वो संपन्न हुआ जिसमें नितीश कुमार नीत् महागठबंधन विजयी रहा। यह चुनाव कई मायनो में ऐतिहासिक था और कई रिकार्ड इस चुनाव के परिणाम ने बनाये। महागठबंधन द्वारा घोषित मुख्यमंत्री नितीश कुमार पाँचवी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद ग्रहण करेंगे और ये एक कीर्तिमान है। इससे पहले बिहार में कभी कोई इतनी बार मुख्यमंत्री नही बना और इतने दिनों तक कोई इस पद पर रहा भी नही है। इस रिकार्ड तोड़ प्रर्दशन के लिए नितीश कुमार को बधाई और बिहार की जनता को भी बधाई।
(Courtsey: Election Commission of India)

इस विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी राजद का प्रदर्शन जानदार रहा है और 243 सदस्यों में से 80 सीटों पर उसे जीत मिली है। अपने आप को यदुवंशियों की रहनुमा कहने वाली पार्टी राजद के इस 80 विधायकों में से 42 यादव जाति से ताल्लुक रखते हैं। बहरहाल ऐसा नही कि यादव केवल राजद से ही जीते है बल्कि जदयू से 11, कांग्रेस से 2 और भाजपा से 6 विधायक यादव चुने गये हैं। विदित हो कि बिहार में सबसे बड़ी संख्या अगर किसी जाति की है तो वो यादव है और इस बार 61 यादव विधायक चुने गये हैं। यादवों के बाद दूसरी बड़ी संख्या अनुसूचित जाति के सदस्यों की है और इस बार 38 विधायक इस तबके से चुन कर आयें है। इसमें 13 राजद से, 10 जदयू से, 5 कांग्रेस से, 9 भाजपा और 1 सीपीआई(एमएल-लिबरेशन) के सदस्य हैं। इसके बाद जो बड़ी तादाद है वो है मुस्लिम सदस्यों की जिनकी संख्या इस बार विधान सभा में 24 विधायकों की है। इनमें 12 राजद के, 6कांग्रेस के, 5 जदयू के और 1 सीपीआई(एमएल-लिबरेशन) के सदस्य हैं। गौर करने वाली बात ये है कि एनडीए के 10 मुसलमान उम्मीदवारों में से किसी को भी जीत हासिल नही हुई है। भाजपा ने 2, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने 4, लोजपा ने 3, और रालोसपा ने 1 मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था। इससे साबित हो जाता है कि मुस्लिम मतदाताओं का भाजपा के प्रति नजरिया बिल्कुल नही बदला है और भाजपा के साथ होने से लोजपा भी इस बार उनके लिये अछूत हो गई।
इस बार विधानसभा में 19 राजपूत, 19 कोइरी, 17 भूमिहार, 16 कुर्मी, 16 वैश्य और 3 कायस्थ सदस्य होंगे। राजद के 2, जदयू के 6, कांग्रेस के 3 और भाजपा के 8 सदस्य राजपूत जाति के हैं। लोजपा, रालोसपा और हम के किसी राजपूत उम्मीदवार को जीत नही मिली। 2015 में निर्वाचित इस विधानसभा में जदयू से 11, राजद से 4, भाजपा से 1 और रालोसपा से 1 सदस्य कोइरी जाति के है। रामविलास पासवान की लोजपा ने 11 दलितों जिसमें 4 उनके पारिवारिक सदस्य थे, को टिकट दिया था जिसमें कोई भी नही जीत पाया।

विधानसभा चुनाव के दौरान लालू यादव ने कहा कि ये चुनाव अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई है। विधानसभा चुनाव के परिणम के आंकड़ो का विश्लेषण करने पर जो निष्कर्ष निकल कर आता है वो इसे साबित करता हैं। अगड़ी जाति के सदस्यों की संख्या इस विधानसभा में आजादी के बाद न्यूनतम स्तर पर है तो पिछड़ी जातियों के सदस्यों की संख्या अधिकतम स्तर पर है। एकीकृत बिहार में 1951 में 46 फीसदी सदस्य अगड़ी जाति के थे लेकिन झारखंड के अलग होने के बाद 2005 में हुए चुनाव में ये संख्या 30 प्रतिशत की थी। 2015 के चुनाव में ये संख्या घटकर 20 फीसदी रह गई है। वहीं 1952 में पिछड़ी जाति के 19.3 फीसदी सदस्य विधानसभा में पहूँचे थे तो 2005 के चुनाव में ये संख्या बढ़कर 34.5 प्रतिशत हो गई थी और इस विधानसभा में ये संख्या 46 फीसदी हो गई है। अगड़ी जातियों में ब्रह्मण और कायस्थ सदस्यों की संख्या लगातार कम हुई है तो पिछड़ो में यादव सदस्यों की संख्या सर्वाधिक बढ़ी है। यह रूझान बदलते बिहार की है जो शायद जातिवादी नही है।   

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