बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

दाल में उबाल

दाल में उबाल
21/102015, नई दिल्ली। आजकल इंटरनेट पर एक चुटकुला प्रचलन में है कि 1 किलो अरहर की दाल खरीदने पर पैन कार्ड दिखाना अनिवार्य होगा। इस तरह के मजाक इसलिए किये जा रहें है क्योंकि देश में दाल की कीमत आसमान छू रही है। यह अब तक के अधिकतम स्तर पर है। दाल की कीमत इतनी बढ़ गयी है कि देश की अधिकांश आबादी की थाली से ये गायब हो चुकी है। ऐसा नही है कि कीमतें रातों-रात बढ़ी है, बल्कि इसने तकरीबन 6 महीने का समय लिया है। मार्च 2015 में अरहर दाल की कीमत तकरीबन 110 रूपये प्रति किलो थी पर अब ये 200 रूपये के पार पहुँच चुकी है। इसकी वजह दाल की बढ़ती कीमतों को थामने के लिए सरकारों द्वारा समयोचित कार्यवाही नही करना सबसे बड़ा कारण नजर आता है।

दुनिया में दाल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता भारत है। अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए भारत करीब 40 लाख टन दाल आयात करता है। साल 2014 में करीब 175.77 करोड़ रूपये कीमत की दलहन का आयात किया गया। उत्पादन वर्ष 2014-15 में 173.8 लाख टन दाल की पैदावार हुई थी। इसी अवधि के लिए अनुमानित लक्ष्य 192 लाख टन का था और देश में हुई पैदावार इस लक्ष्य से करीब 20 लाख टन कम था। भारत में 1986-87 के बाद ये पहला मौका है जब लगातार दो साल 2014-15 में अनुमान से कम बारिश हुई है और कई इलाकों में सूखे की स्थिति रही है। कम बारिश की वजह से दाल की फसल प्रभावित हुई और उत्पादन कम हुआ। सरकार ने अरहर दाल की न्यूनतम समर्थन मूल्य साल 2014-15 के लिए 4350 रूपये घोषित किया था जबकि साल 2015-16 के लिए 4425 रूपये रखी गई है। इसमें 1.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई जबकि यह बढ़ोतरी साल 2012-13 में 20 प्रतिशत और साल 2013-14 में 11.6 प्रतिशत की थी। न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार द्वारा तय वो कीमत है जिसपर सरकार किसानों से किसी कृषि उत्पाद को खरीदती है। इस कीमत में साल दर साल आई गिरावट ने किसानों को मजबूर किया कि वो दाल की खेती कम करें जिससे दाल के उत्पादन में गिरावट आई। आज देश में चावल का भंडार करीब 142 लाख टन है और गेंहू का 325 लाख टन का है। यह भंडार नए मार्केटिंग सीजन के शुरुआत में करीब चावल 82.5 लाख टन और गेंहू 175 लाख टन का प्रावधान है। इस भंडार के बढ़ने का मतलब है कि देश में गेंहू और चावल की खेती अनुपात से ज्यादा हो रही है। किसानों के खेती में किये गये इस तरह के बदलाव अन्न उत्पादन में असंतुलन पैदा कर रहें हैं।
भारत में दाल की उत्पादन में कमी का सीधा असर विश्व में दाल की कीमतों पर पड़ता है। आयात किये गये अरहर की कीमत इस वर्ष देश में करीब 2100 डॉलर प्रति टन है जबकि पिछले साल ये कीमत करीब 700 से 800 डॉलर प्रति टन थी। इसका सीधा अर्थ ये है कि हमें अपनी दाल की पैदावार बढ़ाने के उपाय करने होंगे। सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के दर में वृद्धि करनी होगी ताकि किसान अधिक जमीन पर दाल की खेती करने के लिए प्रेरित हों। दूसरा उपाय जमाखोरी को रोकने के लिए करने होंगे जिससे देश भर में मुनाफाखोरों पर लगाम लगाया जा सकें। जरूरी सामान का स्टॉक कर या आयात कर कीमतों में बढ़ोतरी करवाने वाले इन जमाखोरों पर कड़ी कार्यवाही करनी होगी। तीसरा उपाय सप्लाई चेन मैनेजमेंट को दुरूस्त करना होगा। देश भर सभी हिस्सों में मांग के मुताबिक आपूर्ति कर इस समस्या को दूर किया जा सकता है।

दाल की कीमतें कम करना सरकारों के पूरी तरह से अधीन है। बस जरूरत है मजबूत इच्छाशक्ति की।      

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें