शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

बिहार का मुख्यमंत्री कौन?

बिहार का मुख्यमंत्री कौन?
25/09/2015, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। पूरे देश की नजर इस चुनाव पर नजर है। इस चुनाव में सत्ता और विपक्ष दोनो के लिये करो या मरो की स्थिति है। केंद्र में सत्ता पर काबिज बीजेपी नीत एनडीए बिहार में अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में है। एनडीए के सामने बिहार में पिछले 10 सालों से कुर्सी संभाल रहे नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन जोरआजमाइश के लिये तैयार खड़ी है। महागठबंधन में जदयू, राजद और कांग्रेस ने नीतीश कुमार को पहले से मुख्यमंत्री के तौर पर अपना उम्मीदवार घोषित किया है। एनडीए ने अभी तक किसी को मुख्यमंत्री के तौर पर अपना उम्मीदवार नही बनाया है। एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बना कर मैदान में उतरने का फैसला किया है। वैसे तो एनडीए में कई संभावित उम्मीदवार हैं लेकिन मुख्यमंत्री बनने की संभावना बीजेपी के ही किसी सदस्य की है। सहयोगी दलों में भी कई नेताओं ने बिहार की सत्ता के लिये मंसूबे पाल रखे है, लेकिन एनडीए के सबसे बड़े घटक बीजेपी ऐसा होने देगी इसकी संभावना नही के बराबर है। लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान कई बार इस आशय की चर्चा परोक्ष रूप से की है लेकिन उन्ही के पुत्र चिराग पासवान भी इस पर अपनी दावेदारी काफी पहले जता चुके है। ये अलग बात है कि चुनाव की घोषणा के बाद से लोजपा प्रमुख या उनके पुत्र ने इस संदर्भ में अपना मुँह नही खोला है। एक और घटक राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा है लेकिन किसी भी तरफ से समर्थन ना मिलने से वो अपना मन मसोस कर रह गये। जदयू छोड़कर एनडीए में नये-नवेले शामिल और महादलित नेता जीतनराम मांझी तो शायद इसी मंसूबे के साथ एनडीए में आये ही थे लेकिन यहां आने के बाद समझ में आया कि ये कुर्सी इतनी आसानी से नही मिलने वाली। उनके लिये दूसरा कोई उपाय होता तो शायद वो निकल भी जाते लेकिन बाकी दरवाजे तो वो खुद बंद कर आये थे। बीजेपी में पहला नाम सुशील मोदी का आता है लेकिन उनकी संभावना नही के बराबर है। वजह तो कई है मसलन जातिवाद का आरोप, साफ-सुथरी छवि का ना होना और सबसे बड़ी बात वर्तमान नेतृत्व को नापसंद होना है। इस नापसंदगी की वजह तो कई वर्ष पुरानी है क्योंकि जब गुजरात तत्कालीन के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा चली तो बिहार के मुख्यमंत्री के पक्ष में और गुजरात के मुख्यमंत्री के विरोध में सबसे मुखर रहने के गौरव उन्हे प्राप्त है। दूसरा नाम वर्तमान कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का है। लेकिन मंत्रालय में उनके वर्तमान प्रदर्शन पर प्रधानमंत्री कार्यालय की नाराजगी उन्हे इस कुर्सी से दूर कर देता है। प्याज और दाल की कीमत कृषि मंत्री को बिहार की कुर्सी से चुकानी होगी। तीसरा नाम संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद का है लेकिन उनकी स्थिति लचर है। वर्तमान बीजेपी नेतृत्व को पता है कि वो सबके साथी है और किसी के भी साथी नही है। हर बार शीर्ष नेतृत्व के करीब हो जाना महज संयोग नही हो सकता चाहे शीर्ष पर कोई भी हो। इसके अलावा एक नाम और उभर कर आता है वो है पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकिशोर यादव का है। साफ-सुथरी छवि, मेहनती और ईमानदार होना और संगठानात्मक और प्रशासकीय अनुभव उन्हे इस लायक बनाता है। बाकि संगठन और नेतृत्व की तरफ से कोई और नाम आ जाये तो कोई आश्यर्य नही होगा क्योंकि बीजेपी की वर्तमान अवस्था इसके लिये अनुकूल है।

महागठबंधन की ओर से वर्तमान परिस्थिति में नीतीश कुमार तो मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार हैं लेकिन परिस्थितियां तब बदल सकती है जब सहयोगी राजद को जदयू से ज्यादा सीटें हासिल हो जाये। चारा घोटाले में सजा होने के बाद राजद प्रमुख ना तो चुनाव लड़ सकते और ना तो किसी संवैधानिक पद पर बैठ सकते। इसलिये अपने दोनो बेटों को चुनाव मैदान में उतार कर अपनी राजनीतिक विरासत का उतराधिकारी उन्हे बना दिया है। इसे आगे बढ़ाने के लिये वो सत्ता की चाभी अपने पास ही रख कर नीतीश कुमार पर हमेशा दबाव बनाये रखना चाहेंगे। नीतीश और महागठबंधन इस दबाव को कितना झेल पायेगा ये तो समय तय करेगा। विधानसभा चुनावों में अब बहुत कम समय बचा है और उम्मीद है कि राज्य की जनता ने तय कर लिया होगा कि बिहार का सिरमौर किसे बनाना है। अब किसके सिर पर ताज सजेगा ये तो 8 नवंबर को ही पता चलेगा।     

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