शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

डायबीटीज – एक खामोश हत्यारा

डायबीटीज – एक खामोश हत्यारा
1/09/2015 - नई दिल्ली। आज सुबह अखबार के पहले पन्ने पर एक खबर देखी – अमेरिका में 3 साल की बच्ची को डायबीटीज टाईप -2 रोग से पीड़ित पाया गया है। शायद ये बच्ची दुनिया की सबसे कम उम्र की डायबीटीज रोगी है। इस बच्ची का वजन 35 किलो है और वो मोटापे से ग्रसित है। दुनिया भर में डायबीटीज एक खतरनाक रोग बन कर उभरा है। दुनिया की आबादी का 8.3 प्रतिशत हिस्सा या करीब 38.7 करोड़ लोग इस रोग से पीड़ित है। विश्व भर में बच्चों में टाईप-2 डायबीटीज की बीमारी नाटकीय रूप से बढ़ी है और इसकी वजह है मोटापा।
डायबीटीज रोग में मरीज के शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है और कारण होता है आग्न्याशय (पैनक्रियाज) द्वारा इंसुलिन का उत्सर्जन सही मात्रा में नही करना। मनुष्य द्वारा खाने में जो कार्बोहाइड्रेट लिया जाता है उसे पाचन तंत्र ग्लूकोज में बदलते है और ये इंसुलिन के जरिये खून में मिलकर मनुष्य के शरीर में उर्जा का संचार करता है। जब इंसुलिन का इंसान के शरीर में सही मात्रा में उत्सर्जन नही होता तो खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है और इस अवस्था को डायबीटीज या मधुमेह के नाम से जाना जाता है। डायबीटीज मूलतः दो तरह का होता है- टाइप – 1 और टाइप – 2। डायबीटीज टाइप -1 में मरीज के शरीर में इंसुलीन नही बनता या ना के बराबर बनता है। इसमें मरीज को इंसुलीन पर निर्भर रहना पड़ता है और इंसुलिन नही लेने पर मरीज की मौत भी हो सकती है। इस प्रकार का मधुमेह वैसे तो किसी भी उम्र में हो सकता है परंतु ज्यादातर बच्चे और युवाओं में पाया जाता है। टाइप-2 में मरीज के शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन संतुलित मात्रा में नही होता है और तकरीबन दुनिया के कुल डायबीटीज मरीजों में 90 प्रतिशत इस तरह के होते है। इस तरह के मरीजों के शरीर में इंसुलिन प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है या फिर इंसुलिन पर्याप्त मात्रा में नही बन पाता है। ये किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन इसका मोटापा से कोई लेना-देना नही है।
दुनिया भर के विशेषज्ञों का मानना है कि डायबीटीज जीवन-शैली संबंधित रोग है। लेकिन कम उम्र के युवाओं और बच्चों में इस बीमारी का फैलना चिंता का विषय है। टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव की वजह से बच्चे टीवी, कंप्युटर और विडियो गेम का इस्तेमाल ज्यादा करने लगे है। ऐसे में बच्चों की शारीरिक गतिविधियां बहुत हीं कम हो गयी है। खेल के मैदान में बच्चे समय कम से कम दे रहें है और खानपान की शैली भी मौजूदा समय में बहुत ही असंतुलित हो चला है। जंक फूड का ज्यादा इस्तेमाल ऐसी परिस्थिति में कोढ़ में खाज की तरह साबित हो रहा है। इन सारी वजहों से उनमें मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। इस कारण युवाओं और बच्चों में टाइप-1 डायबीटीज तेजी से बढ़ रहा है। बच्चों में संतुलित खानपान और शारीरिक क्रियाकलाप को बढ़ावा देना इससे बचने में मदद करेगा।

भारत में 1971 में 1.2 फीसदी लोग डायबीटीज से पीड़ित थे लेकिन सन 2000 आते-आते ये तादाद 12 फीसद हो चुकी थी। एक अनुमान के मुताबिक 2011 में भारत में 6.13 करोड़ लोग इससे पीड़ित हो चुके थे और ये तादाद सन 2030 तक बढ़ कर 10 करोड़ के पार हो जायेगी। साल 2012 में करीब 10 लाख भारतीय इसकी वजह से मौत के शिकार हो चुके है। पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीय करीब डायबीटीज होने के उम्र के 10 साल पहले ही इसका शिकार हो जाते है। जीवन शैली में बदलाव जैसे कम शारीरिक मेहनत, सुस्त दिनचर्या, चीनी और वसा का ज्यादा इस्तेमाल इसके प्रमुख कारण है। इन सबके अलावा एक अहम कारण जो निकलकर सामने आयी है वो है भागदौड़ और तनावपूर्ण जिंदगी। महानगर के अलावा ग्रामीण जनसंख्या भी तनाव की चपेट में है। भौतिक सुख और विलासपूर्ण जीवन की लालसा ने मनुष्य को इसके तरफ ढ़केला है। डायबीटीज के वजह से हृदय रोग, तंत्रिका तंत्र की समस्या, किडनी खराब होना और आँखों में रेटिना संबंधित बीमारी आम है। इससे बचाव के लिये जीवन शैली में बदलाव लाना सबसे महत्वपूर्ण है। नियमित जीवनशैली, संतुलित खानपान और जानकारी द्वारा हीं इस महामारी से बचा जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें