भारत
और पकिस्तान – कितने करीब?
17/09/2015- नई दिल्ली।
भारत में लोक सभा चुनाव 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार
बनी। मनोनीत् प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाकिस्तान समेत सभी पड़ोसी देशों
को शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का न्यौता देना पूरी दुनिया के लिये किसी
आश्चर्य से कम नही था। इससे पहले भारत के किसी मनोनीत प्रधानमंत्री ने ऐसा नही
किया था। इस निमंत्रण को पड़ोसी देशों के साथ पूर्ववर्ती सरकार की नीति से अलग
हटकर संबंध सुधारने की दिशा में एक नये प्रयास के तौर पर देखा गया। पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ आये भी और एक उम्मीद जगी कि अब शायद पड़ोसी के साथ संबंध
बेहतर होंगे। आज करीब एक 15 महीनों के बाद संबंधो में बदलाव तो दिखा है, लेकिन
अपेक्षित और सकारात्मक नही है। कई पहलू है इस बदलाव के और मोदी सरकार ने शायद ये
अनुमान पहले लगा लिया था। पिछले सवा साल में भारत-पाक सीमा पर सीजफायर उल्लंघन की
धटनायें पहले से ज्यादा हुई है। आतंकवादियों के घुसपैठ की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई
है। सीमा पर तनाव घटने के बजाय बढ़ गया है। दोनो देश के तरफ से भड़काऊ बयान लगातार
दिये जा रहें है। दोनो देशों के बीच विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर
की बातचीत रद्द की जा चुकी है और भविष्य में कब बातचीत होगी मालूम नही।
पाक प्रधानमंत्री नवाज
शरीफ द्वारा मोदी सरकार के शपथ ग्रहण में शामिल होने के निमंत्रण स्वीकारने के बाद
ये उम्मीद जगी कि रिश्ते शायद अब सही राह पर चल पड़े है। 27 मई 2014 को मोदी और
शरीफ की पहली मुलाकात दिल्ली के हैदराबाद हाउस में हुई। इस मुलाकात के दौरान
भारतीय प्रधानमंत्री ने आतंकवाद और 26/11 की घटना के उठाया। मुलाकात से पहले
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा कि वो शांति का संदेश लेकर आये हैं। स्वदेश
लौटने के बाद नवाज शरीफ ने नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि भारत में हुये
बातचीत से वो बेहद संतुष्ट है। इसके बाद पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर गोलीबारी, जो
पहले छुटपुट होती थी, की घटनाओं में धीरे-धीरे बढ़ोतरी शुरू हुई। सितम्बर में
विदेश सचिव स्तर की वार्ता से पहले कश्मिरी अलगाववादियों को पाकिस्तानी दूतावास
द्वारा बातचीत के लिये अमंत्रित किया। इसपर कड़ा ऐतराज जताते हुये भारत ने ये
वार्ता रद्द कर दी। सितंबर के महीने में ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने संयुक्त
राष्ट्रसंघ में जब कश्मीर का मुद्दा उठाया तो भारतीय प्रधानमंत्री ने संयुक्त
राष्ट्र संघ के सचिव के पास अपना विरोध दर्ज कराया। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र
महासभा में पड़ोसियों से सभी मुद्दे आपसी बातचीत के जरिये सुलझाने के प्रति अपनी
प्रतिबध्दता जताई। लेकिन पहली बार हालात बिगड़ने का अंदाजा हुआ अक्तूबर में जब
पाकिस्तान की ओर से की गई गोलीबारी में 5 भारतीय नागरिकों की मौत हुई। भारत सरकार
तब फुर्ती दिखाते हुये बीएसएफ से बराबरी से जवाबी कार्रवाई करने का निर्देश जारी
किया। इसके बाद नवंबर में काठमांडू में हुये सार्क सम्मेलन में दोनो
प्रधानमंत्रियों की आपसी मुलाकात नही हुई। इसके बाद दोनो देशों के बीच कोई
अधिकारिक बातचीत नही हुई। सीमा पर गोलीबारी और आतंकी घुसपैठ बदस्तूर जारी रहा। इस
साल जुलाई के महीने में रूस के ऊफा में शंघाई कॉपरेशन आर्गनाइजेशन की बैठक के
दौरान दोनो प्रधानमंत्रियों की मुलाकात हुई। दोनों बातचीत को फिर से शुरू करने के
लिये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की मीटींग के लिये तैयार भी हुये। लेकिन ऐन
मौके पर पाकिस्तान द्वारा फिर पुरानी गलती दुहराई गई। कश्मिरी कट्टरपंथियों और
अलगाववादियों को फिर बातचीत से पहले पाकिस्तान द्वारा निमंत्रित किया गया जिसपर
भारत ने फिर से ऐतराज जताया। भारत की ओर से कहा गया कि अलगाववादी इस मुद्दे में
कोई आधिकारिक हैसियत नही रखते और उनको इसमें शामिल करना शिमला समझौते का उल्लंघन
है। भारत की ओर से स्पष्ट किया गया कि बातचीत सिर्फ दोनों पक्षों में हो सकती है
और अगर पाकिस्तान इसके लिये तैयार हो तभी वार्ता होगी। नतीजतन पाकिस्तान की ओर से
वार्ता रद्द करने की घोषणा की गयी। दरअसल जब भी भारत-पाक का राजनैतिक नेतृत्व
संबंधो को सुधारने की ओर अग्रसर होता है पाकिस्तान की सेना अपने को असहज महसूस
करने लगती है। तीन आधिकारिक और एक गैर- आधिकारिक युद्ध हारने के बाद पाक-सेना का
नेतृत्व इस बात को समझता है कि भारत से सीधे तौर पर पार नही पाया जा सकता। अलगाववादियों
को बढ़ावा देना, परोक्ष रूप से आतंकवाद को भारतीय सीमा में भेजकर हमला कराने जैसी
स्थितियों से ही भारत को परेशान किया जा सकता है। दूसरी ओर अहम बात यह है कि
पाकिस्तानी सेना कभी भी लोकतांत्रिक सरकार का सत्तापलट कर शासन में आ जाती है
जिससे बातचीत की पूरी प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इस बार भी ऐसी खबरें आ रही है
कि शायद पाकिस्तान में जल्द ही कोई बड़ा फेरबदल हो जाये। अब देखना ये होगा कि ऐसी
परिस्थिति में भारत सरकार किस तरह का रूख अख्तियार करती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें