बुधवार, 30 सितंबर 2015

मोदी के विदेश यात्रा के फायदे

मोदी के विदेश यात्रा के फायदे
29/09/2015, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अमेरिका की दूसरी बार यात्रा खत्म कर वापस देश लौट चुके हैं। प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा के कारण हमेशा विपक्ष के निशाने पर रहते हैं। विपक्ष का मानना है कि देश की आंतरिक समस्याओं को नजरअंदाज कर वो विदेश यात्रा पर रहते है। अब तक प्रधानमंत्री ने कुल 28 विदेश यात्रायें की है जिसमें अमेरिका और नेपाल दो बार गयें है। अपने पहले साल में मोदी ने कुल 18 विदेश यात्रायें की जिसमें 5 पड़ोसी देशों की यात्रा शामिल है। इन 18 में से 16 यात्राओं का खर्च करीब 37.22 करोड़ रूपये का बताया गया है। अपने दूसरे साल के चार महीनो में वो 10 देशों की यात्रा कर चुके हैं। सवाल यह उठता है कि लगातार एक के बाद एक हो रहे विदेशी दौरों से देश को कितना लाभ पहुँचा है या पहुँचने वाला है?

प्रधानमंत्री ने अपने शुरूआती दिनों में ही स्पष्ट कर दिया था कि आप दोस्त बदल सकते हैं पड़ोसी नही और उनसे बेहतर संबंध रखकर ही कोई देश तरक्की कर सकता है। पड़ोसी देशों जैसे भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यानमार और श्रीलंका का दौरा कर मोदी ने एक विश्वास तो कायम किया ही साथ-साथ उनको ये भरोसा दिलाया की भारत एक अच्छ पड़ोसी है। नेपाल को भूकंप के बाद उबरने के लिये सहायता पहुँचाने में जो अभूतपूर्व तेजी भारत ने दिखाई उसकी सराहना पूरी दुनिया ने की। बांग्लादेश के साथ सालों से लंबित पड़े सीमा विवाद को निपटाकर मोदी सरकार द्वारा पड़ोसीयों से बेहतर संबंध कायम करने की एक शानदार मिसाल है। नेपाल और भूटान में पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना के लिये समझौता कर ग्रीन एनर्जी हासिल करना वर्तमान सरकार के लिये एक और उपलब्धि है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाद श्रीलंका की यात्रा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मैथ्रीपाला सिरिसेना से मिले और तमिल बहुल इलाके जाफना के दौरा किया। किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा पहली बार जाफना का दौरा ये स्पष्ट करने के लिये काफी था कि तामिलों के हित के लिये भारत कुछ भी कर सकता है।       
विदेश दौरों की उपलब्धियों की शुरूआत प्रधानमंत्री मोदी की जुलाई 2014 में ब्राजील के फोर्टलेजा में हुए ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रिका) सम्मेलन से हुई जिसके दौरान न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना करने को अंतिम रूप दिया गया और इस बैंक का पहला अध्यक्ष भारत का होगा इस आशय के समझौते हुये। यही पर चीन के राष्ट्रपति शीजिनपिंग ने भारत को शंघाई कॉपरेशन आर्गनाइजेशन का पूर्णकालिक सदस्य बनाने की इच्छा जाहिर की। अगस्त-सितम्बर 2014 में अपने जापान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने वाराणसी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने के लिये समझौता किया तो साथ ही जापान ने भारत में 30 मिलियन डॉलर निवेश करना स्वीकार किया जिसमें दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का विकास करना शामिल है। सितम्बर 2014 में ही अपने अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ओबामा से पहली बार मुलाकात की और यूएन जनरल एसेम्बली के 69 वे अधिवेशन को संबोधित किया और दुनिया को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिये राजी किया। अपनी इस यात्रा के दौरान मोदी ने अमेरिका के उद्योग जगत को भारत में निर्माण के लिये अमंत्रित किया ताकि मेक इन इंडिया को सफल बनाया जा सके। नवंबर 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री 28 सालों में ऑस्ट्रेलिया का अधिकृत दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। इस यात्रा के दौरान भारत- ऑस्ट्रेलिया के बीच सितंबर में हुये सिविल-न्यूक्लियर समझौते को यथाशीघ्र लागू करने के लिये ऑस्ट्रेलिया को राजी किया जिससे देश को न्यूक्लियर एनर्जी के लिये यूरेनियम जल्द मिल सके। सेशेल्स, फिजी और मॉरीशस की यात्रा कर प्रधानमंत्री ने इन देशों को ये विश्वास दिलाया की भारत उन सबसे बेहतर और मजबूत संबंध की आशा करता है। अप्रैल 2015 में यूरोपीय यूनियन के मजबूत स्तंभ फ्रांस, जर्मनी और कनाडा की यात्रा कर भारतीय प्रधानमंत्री ने देश के लिये कई महत्वपूर्ण समझौते किये। कमजोर हो रही वायुसेना को मजबूती देने के लिये फ्रांस से 36 राफेल जेट का यथाशीघ्र देने का सौदा किया। सबसे महत्वपूर्ण समझौता कनाडा के साथ हुआ जिसने उसने भारत को लंबे समय तक यूरेनियम देना स्वीकार किया। मई 2015 में प्रधानमंत्री चीन, मंगोलिया और दक्षिण कोरिया की आधिकारिक यात्रा पर गये चीन के इस यात्रा में भारत ने उसके साथ छोटे-बड़े 24 समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिनमे सिस्टर स्टेट और सिस्टर सिटी स्थापित करना शामिल रहा। मंगोलिया यात्रा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री का गौरव हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी का उद्देश्य न्यूक्लियर इस्तेमाल के लिये यूरेनियम हासिल करना था। भारत और मंगोलिया ने 14 सितंबर 2009 को ही इसके लिये समझौता किया था लेकिन इस यात्रा तक भारत को यूरेनियम की पहली खेप भी हासिल नही हो पायी थी। इस यात्रा का दूसरा मकसद चीन को चौतरफा घेरने के लिये उसके आसपास के देशों से दोस्ताना संबंध बनाना भी था जिसमें भारत कामयाब रहा। इसी कड़ी में दक्षिण कोरिया की यात्रा भी महत्वपूर्ण रही जहाँ राजनैतिक और औद्योगिक महत्व के सात समझौते हुये। पिछले दशक में दक्षिण कोरिया ने भारत में करीब 3 बिलियन डॉलर का निवेश किया है और इस यात्रा के बाद इसमें बढ़ोतरी की उम्मीद है। जुलाई 2015 में उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, रूस, तुर्कमेनिस्तान, किर्गीजस्तान और तजाकिस्तान की यात्रा प्रधानमंत्री की मल्टी डायरेक्शनल स्ट्रेटजी का हिस्सा रही। पहले चरण में खनिज संपन्न उजबेकिस्तान के साथ साल 2014 में हस्ताक्षर किए गए यूरेनियम की आपूर्ति के अनुबंध को लागू करने के तरीकों पर चर्चा की गई। दोनो देशों के बीच क्षेत्रिय सहयोग और आतंकवाद बातचीत के अन्य प्रमुख मुद्दे रहे। दूसरे चरण में कजाकिस्तान की यात्रा के दौरान 2015 से 2019 के बीच 5000 टन यूरेनियम सप्लाई के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गये। इसके अलावा दोनो देशों के बीच सामरिक महत्व के तकनीक हस्तांतरण के लिये समझौते किए गये। तीसरे और महत्वपूर्ण चरण में रूस के उफा में ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने के अलावा कई द्विपक्षीय सम्मेलन हुए जिनमें पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ हुई बातचीत भी शामिल है। यही पर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत को पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल किया गया। उफा में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए बातचीत के बाद घोषणापत्र जारी किया गया जिसमें सभी लंबित मुद्दों पर चर्चा के लिए दोनो देशों ने सहमति जताई और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर वार्ता के लिये तैयार हुए। चौथे चरण में तुर्कमेनिस्तान के साथ सात समझौते हुए और TAPI(Turkmenistan-Afghanistan-Pakistan-India) गैस पाइपलाइन परियोजना के जल्द पूरा करने पर जोर दिया गया। पांचवे चरण में किर्गिजस्तान की यात्रा में रक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में चार समझौते हुए। अंतिम चरण में तजाकिस्तान के दौरे पर दो समझौते पर हस्ताक्षर के साथ मध्य-एशिया का दौरा पूरा हुआ। अगस्त 2015 34 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की संयुक्त अरब अमिरात यात्रा हुई जहां हिंदू मंदिर के लिये वहां की सरकार द्वारा जमीन दी गई। इसके अलावा आतंकवाद और अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए दोनो ने प्रतिबद्धता जताई। हाल में नरेंद्र मोदी आयरलैंड और अमेरिका की एक सप्ताह की यात्रा पर थे। जवाहर लाल नेहरू के बाद आयरलैंड जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा छोटी लेकिन कई मायनो में महत्वपूर्ण रही। न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत की सदस्यता के लिये आयरलैंड का समर्थन महत्वपूर्ण है। इसके अलावा वाणिज्य, व्यापार और उड्डयन के क्षेत्र के साथ-साथ शिक्षा और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये दोनो देशों में सहमति बनी। अमेरिका के दूसरे दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन के शांति शिखर सम्मेलन में देश के संयुक्त राष्ट्र के अभियनों में भारत की महत्वपूर्ण उपस्थिति को इंगित किया और कहा कि ये उचित समय है जबकि ऐसे देशों को यूएन में महत्वपूर्ण रोल मिले। मोदी का इशारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की तरफ था। वहीं राष्ट्रपति ओबामा से द्विपक्षीय बातचीत के बाद 25 अरब डॉलर के हेलिकॉप्टर खरीदने का समझौता हुआ। इस बैठक के बाद जारी वक्तव्य में मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को सुरक्षा परिषद में भारत के सदस्यता का समर्थन के लिये धन्यवाद किया। सिलिकोन वैली में फेसबुक, गूगल जैसी कंपनियों के साथ भारत में कई परियोजनाओं को लागू करने पर सहमति बनी।
इन सभी यात्राओं में दो बात निकलकर आती है – आतंकवाद के मुद्दे पर समर्थन जुटाना और भारत के सामरिक एवं राजनैतिक समर्थन हासिल करना। उपरोक्त सभी यात्राओं में ये दोनो मुद्दे महत्वपूर्ण रूप से एजेंडे में शामिल रहे और समर्थन जुटाने के अपने इस मकसद में मोदी कामयाब रहे। विपक्ष की भूमिका सरकार की आलोचना करने तक सीमीत नही है बल्कि कुछ अच्छा हो तो सरकार की सराहना भी करनी चाहिए।            

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