शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

(Bihar Election-An Perspective) बिहार चुनाव के परिदृश्य

बिहार चुनाव के परिदृश्य
28 अगस्त। बिहार विधान सभा चुनाव इस बार काफी रोचक होता जा रहा है। आठ साल बीजेपी के साथ सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार इस बार लालू यादव और कांग्रेस के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलने को तैयार है। समाजवादी पार्टी, जद-यू और राजद समेत 6 पार्टियों के इस गठजोड़ का पहले विलय होना तय हुआ था लेकिन विलय पर आपसी सहमति नही बन पाने के कारण महागठबंधन का नाम दिया गया। वहीं बीजेपी अपने एनडीए पार्टनर लोजपा और रालोसपा के अलावे जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के साथ मैदान में है।
हाल के दिनों में बिहार के मुख्यमंत्री की दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से बढ़ती हुई करीबी राजनीतिक हलको में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस करीबी के कई मायने निकाले जा सकते है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बिहार में सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था और परिणाम जगजाहिर है। लोकसभा चुनाव 2014 में केजरीवाल ने नीतीश कुमार और लालू यादव पर जम कर हमला बोला था और बिहार की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार ठहराया था। पिछले एक साल में ऐसा क्या करिश्मा हुआ कि केजरीवाल के लिए वही नीतीश कुमार विकास पुरूष लगने लगे है?

इस सवाल के कई मायने और मतलब हो सकते है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज की तारिख में दोनो की राजनीती एक ही मुद्दे पर टिकी हुई है और वो है मोदी विरोध और अल्पसंख्यको का मसीहा बनने का। लोकसभा चुनाव के पहले से ही नीतीश मोदी के मुखर विरोधी रहे हैं और बीजेपी से गठबंधन भी इसी वजह से तोड़ा था। बिहार के मुख्यमंत्री को ये डर था कि अगर मोदी को नेता स्वीकारते है तो वो अल्पसंख्यक वोट बैंक से हाथ धो बैठेंगे और दूसरा ये कि वो खुद को भावी प्रधानमंत्री के तौर पर देख रहे थे। खुद को बदलाव और स्वच्छ राजनीती का चैंपियन मानने वाले केजरीवाल की पूरी राजनीती भाजपा और कांग्रेस के विरोध से शुरू हुई लेकिन बाद में वो कांग्रेस के साथ 49 दिन की सरकार बैठे। इस साल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल का मुख्य मुद्दा बीजेपी का विरोध रहा। दिल्ली में सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री केजरीवाल लगभग हर मुद्दे पर केंद्र से टकराव का रूख अख्तियार किये हुए है। शायद यही वो वजहें है जो दोनो नेताओं को करीब ले आइ है। केजरीवाल की चुनावी सफलता में अहम योगदान प्रवासी बिहारी वोटरों का रहा है और नीतीश को ये लगता है कि आप के मुखिया के जरिये उन वोटरों और उनके घर-परिवार और रिश्तेदारों में पैठ बनाकर बिहार का किला फतह कर लेंगे। परिणाम तो आने वाला वक़्त हीं तय करेगा। 

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